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ज़े-हाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल दुराय नैनाँ बनाए बतियाँकि ताब-ए-हिज्राँ न-दारम ऐ जाँ न लेहू काहे लगाए छतियाँ
साक़ी न खुलेगा दर-ए-मय-ख़ाना अगर आजमर जाऊँगा टकरा के मैं दीवार से सर आज
गो हमारा है आश्ना रे सजनतू न कर इस क़दर जफ़ा रे सजन
पढ़ रहा था कल तक जो ज़ोह्द का मक़ाला शैख़हो गया है रिंदों का आज हम-पियाला शैख़
देर से हम दर-ए-दौलत पे सदा देते हैंआज देखें मिरे ख़्वाजा मुझे क्या देते हैं
छुपा नहीं जा-ब-जा हाज़िर है प्याराकहाँ दो-चश्म जो मारें नज़ारा
शैख़-जी तशरीफ़ यूँ बहर-ए-ज़ियारत ले चलेलब पे तौब: उन बुतों की दिल में उल्फ़त ले चले
मिलेगी शैख़ को जन्नत हमें दोज़ख़ 'अता होगाबस इतनी बात है जिस के लिए महशर बपा होगा
बे-वफ़ा से दिल लगा कर रो पड़ेदिल पे एक चोट खा कर रो पड़े
शैख़-जी बैठ कर मय-कशों में तर्क-ए-मय का इरादा न करनाकुफ़्र है ऐसी ने'मत को पाकर शुक्र का एक सज्दा न करना
शाख़ पर ख़ून-ए-गुल रवाँ है वहीशोख़ी-ए-रंग-ए-गुल्सिताँ है वही
मैं ना'रा-ए-मस्ताना मैं शोख़ी-ए-रिंदानःमैं तिश्ना कहाँ जाऊँ पी कर भी कहाँ जाना
Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi
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